गांधीवादी युग और भारत की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण घटनाएँ
गांधीवादी युग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह समय था जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन ने एक नई दिशा प्राप्त की। यह युग मुख्यतः 1915 से 1948 तक का माना जाता है। इस दौरान गांधीजी ने सत्य, अहिंसा, और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया और इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को संचालित किया।
महात्मा गांधी, जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधीजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में पूरी की और बाद में कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए।
लंदन से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद, गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय फर्म के लिए काम किया। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने वहां के भारतीय समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव और अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया और वहीं से उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की नींव पड़ी।
दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी की गतिविधियां 1893-1914 ई0
- नटल भारतीय कांग्रेस का गठन एवं इंडियन ओपिनियन नामक पत्र का प्रकाशन
- पंजीकरण प्रमाण पत्र के विरुद्ध सत्याग्रह
- भारतीयों के प्रवचन पर प्रतिबंध लगाए जाने के विरुद्ध सत्याग्रह
- टैक्स तथा भारतीय विवाहों को अपमानित करने के विरुद्ध अभियान
- गांधीजी को आंदोलन के लिए जनता के शक्ति का अनुभव हुआ उन्हें एक विशिष्ट राजनीतिक शैली नेतृत्व के नए अंदाज और संघर्ष के नए तरीकों को विकसित करने का अवसर मिला
1915 में गांधीजी भारत वापस लौटे और यहां के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे। भारत में गांधीजी के प्रारंभिक गतिविधियां
Gandhian Era & Important Events
Important Facts
चंपारण सत्याग्रह (1917) - प्रथम सविनय अवज्ञा
अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) - प्रथम भूख हड़ताल
खेड़ा सत्याग्रह (1918) - प्रथम असहयोग
रोलेट सत्याग्रह (1919) - प्रथम जन हड़ताल
- गांधी जी ने प्रथम विश्व युद्ध के समय लोगों को सेवा में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया इसलिए लोगों ने इन्हें "भर्ती करने वाला सार्जेंट" कहने लगे।
- 1916 ईस्वी में गांधीजी ने अहमदाबाद के करीब साबरमती आश्रम की स्थापना की।
- बिहार के एक किसान नेता राजकुमार ने गांधी जी को चंपारण आने को प्रेरित किया।
- गांधी जी ने सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में किया।
- भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग 1917 ईस्वी में चंपारण (बिहार) में किया गया।
- चंपारण विद्रोह के कारण अंग्रेजों को तीनकटिया प्रथा को समाप्त करना पड़ा।
- पेशेंट ने 20 अगस्त 1917 ई को होमरूल लीग को समाप्त करने की घोषणा की।
- महात्मा गांधी ने पहली बार भूख हड़ताल अहमदाबाद मील मजदूरों के हड़ताल (1918 ई) के समर्थन में की।
- गांधी जी ने 1918 ईस्वी में गुजरात के खेड़ा जिले में "कर नहीं आंदोलन" चलाया।
रोलेट एक्ट (1919)
- लॉर्ड चाल्म्सफोर्ड के वायसराय काल के दौरान, सरकार द्वारा 1918 में जस्टिस रोलेट के साथ एक राजद्रोह समिति नियुक्त की गई थी, जिसने भारत में देशद्रोही गतिविधियों को रोकने के लिए कुछ सिफारिशें की थीं। रोलेट अधिनियम 1919 ने सरकार को संदिग्धों को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार करने और जेल में डालने के लिए बेलगाम अधिकार दिए। इस अधिनियम ने लोगों में गुस्से की लहर पैदा कर दी।
- 19 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट लागू किया गया। इसके अनुसार किसी भी संदेहपद व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाया गिरफ्तार किया जा सकता था परंतु उसके विरुद्ध "न कोई अपील, न कोई दलील और न कोई वकील" किया जा सकता था।
- रोलेट एक्ट को "बिना अपील, बिना वकील, बिना दलील" का कानून कहा गया।
- अधिनियम पारित होने से पहले ही,इसके खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन शुरू हुआ गांधीजी ने इस अधिनियम के खिलाफ लड़ने का फैसला किया और 6 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह का आह्वान किया 8 अप्रैल 1990 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया इससे दिल्ली अहमदाबाद और पंजाब में आंदोलन और तेज हो गया
- गांधी जी ने इस कानून के विरुद्ध 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी हड़ताल कार्रवाई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)
- 13 अप्रैल 1919 ई0 को अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। डॉ सतपाल और सैफुद्दीन किचुल्लू की गिरफ्तारी के विरोध में हो रही जनसभा पर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोली चलवाई। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार उसमें 379 व्यक्ति एवं कांग्रेस समिति के अनुसार लगभग 1000 व्यक्ति मारे गए।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड में हंसराज नामक भारतीय ने डायर का सहयोग किया था।
- संकरण नायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वायसराय के कार्यकारिणी परिषद के सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में महात्मा गांधी ने "केसरी हिंद" की उपाधि जमनालाल बजाज ने "राय बहादुर" की उपाधि एवं रविंद्र नाथ टैगोर ने "सर" की उपाधि वापस लौटा दी।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए सरकार ने 19 अक्टूबर 1919 ईस्वी में लाड हंटर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया इसमें पांच अंग्रेज एवं तीन भारतीय (सर चिमनलाल शीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद एवं जगत नारायण) सदस्य थे।
- कांग्रेस ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में एक आयोग नियुक्त किया। इसके अन्य सदस्यों में मोतीलाल नेहरू और गांधी जी थे।
- जलियांवाला बाग कभी जल्ली नामक व्यक्ति की संपत्ति थी।
खिलाफत आंदोलन (1920-22)
- खिलाफत आंदोलन भारतीय मुसलमान के मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध विशेष कर ब्रिटेन के खिलाफ, तुर्की के खलीफा के समर्थन में आंदोलन था।
- मोहम्मद अली और शौकत अली ने 1920 ईस्वी में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की।
- 19 अक्टूबर 1919 ई को समूचे विश्व में "खिलाफत दिवस" मनाया गया।
- 23 नवंबर 1919 ई को हिंदू और मुसलमान की एक संयुक्त कॉन्फ्रेंस हुई जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की।
असहयोग आंदोलन (1920-22)
- रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड और खिलाफत आंदोलन के उत्तर में गांधी जी ने 1 अगस्त 1920 ई0 को असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। असहयोग आंदोलन की पुष्टि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दिसंबर 1920 ई0 के नागपुर अधिवेशन में की।
- मोहम्मद अली को सर्वप्रथम असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार किया गया।
- मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट तथा बिपिन चंद्रपाल कांग्रेस के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे, अत: उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
- 15 फरवरी 1922 ई0 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर असहयोग आंदोलनकारियो ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी जिससे एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से दुखित होकर गांधी जी ने 11 फरवरी 1922 ई को असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया।
- 13 मार्च 1922 ई को गांधी जी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष की कड़ी कारावास की सजा सुनाई गई। स्वास्थ्य संबंधी कारणो से गांधी को 5 फरवरी 1924 ई को रिहा कर दिया गया।
Note-
- 1922 ई के मेवाड़ भील आंदोलन का नेता मोतीलाल तेजावत था।
स्वराज पार्टी (1923)
- आंदोलन वापस लेने के गांधीजी के निर्णय से जनता में निराशा फैल गई। उनके इस निर्णय की मोतीलाल नेहरू, सीआर दास और एनसी केलकर जैसे उनके सहयोगियों ने कड़ी आलोचना की, जिन्होंने स्वराज पार्टी का गठन किया था। 1 जनवरी 1923 को कांग्रेस-खिलाफत स्वराज पार्टी के रूप में इसकी नींव रखी गई।
- इसने एक वैकल्पिक कार्यक्रम प्रस्तावित किया, जिसमें व्यापक सविनय अवज्ञा कार्यक्रम से हटकर प्रतिबंधात्मक कार्यक्रम की ओर ध्यान केंद्रित किया गया, जो इसके सदस्यों को चुनाव लड़कर विधान परिषदों में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, ताकि विधायिका को भीतर से नष्ट किया जा सके और नैतिक दबाव का उपयोग करके प्राधिकारियों को स्वशासन की लोकप्रिय मांग को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सके।
- 1923 में हुए चुनाव में स्वराज पार्टी ने 145 में से 45 सीटों पर कब्जा कर लिया। बंगाल में स्वराज पार्टी सबसे बड़ी पार्टी थी।
- उन्होंने एकतरफा विरोध की नीति अपनाई। उन्होंने सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, प्रांतीय स्वायत्तता और सरकार द्वारा लगाए गए दमनकारी कानूनों को निरस्त करने की मांग की।
- 1923 ई में इलाहाबाद में चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की
- हालाँकि 1925 में सी.आर.दास की मृत्यु के बाद वे सरकार के साथ सहयोग की नीति की ओर बढ़ गए। इससे मतभेद पैदा हो गया और 1926 में पार्टी टूट गई।
- महात्मा गांधी सिर्फ एक बार कांग्रेस के बेलगांव अधिवेशन 1924 में, इसके अध्यक्ष चुने गए।
- शचीन्द्र सान्याल ने 1924 ईस्वी में "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" की स्थापना की। भगत सिंह ने 1928 ईस्वी में इसका नाम बदलकर "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन" रख दिया।
काकोरी कांड (1925)
- 9 अगस्त 1925 ई0 को जब रेलगाड़ी से सरकारी खजाना सहारनपुर से लखनऊ की ओर जा रहा था, तो इसे काकोरी नामक स्टेशन पर लूट लिया गया। इसे ही काकोरी कांड कहा गया।
- सरकारी खजाना लूटने का विचार राम प्रसाद बिस्मिल का था। इसमें राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाकउल्ला खान को दिसंबर 1927 ईस्वी में फांसी दे दी गई और शचीन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास की सजा मिली। मनमनाथ गुप्त को 14 वर्ष की कैद हुई। राम प्रसाद बिस्मिल यह कहते हुए कि "मैं राज्य के पतन की इच्छा करता हूं" फांसी पर लटक गए।
- संभवत अशरफुल्ला खान भारत के पहले भारतीय क्रांतिकारी मुसलमान थे, जो देश की स्वतंत्रता के लिए फांसी के तख्ते पर लटके थे।
Note-
- स्त्रियों ने स्वयं अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने के उद्देश्य से 1926 में "अखिल भारतीय महिला संघ" स्थापित किया।
साइमन कमीशन (1927)
- स्वराज पार्टी की गतिविधियों ने ब्रिटिश सरकार को 1919 के मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों द्वारा शुरू की गई द्वैध शासन प्रणाली की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने और इस बारे में रिपोर्ट देने के लिए प्रेरित किया कि भारत में किस हद तक प्रतिनिधि सरकार शुरू की जा सकती है। ब्रिटिश सरकार ने इस कार्य के लिए नवंबर 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की।
- साइमन कमीशन 3 फरवरी 1928 ई को भारत आया। इसे वाइट मैन कमीशन भी कहते हैं।
- 30 अक्टूबर 1928 ई को लाहौर में साइमन आयोग के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए, पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
- साइमन कमीशन का बहिष्कार न करने वाले दो दाल थे -जस्टिस पार्टी एवं पंजाब युनियस्टी पार्टी।
- भगत सिंह के नेतृत्व में पंजाब के क्रांतिकारियो ने 17 दिसंबर 1928 ई को लाहौर के तत्कालीन सहायक पुलिस कप्तान सॉण्डर्स को गोली मार दी।
- "पब्लिक सेफ्टी बिल" पास होने के विरोध में 8 अप्रैल 1929 ई को बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने दिल्ली में सेंटर लेजिसलेटिव असेंबली में खाली बैंचो पर बम फेंका।
- 13 मार्च 1940 ई को लंदन में पंजाब के सुनाम नामक स्थान के सरदार उधम सिंह ने पंजाब के भूतपूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर डॉयर की गोली मारकर हत्या कर दी।
नेहरू समिति की रिपोर्ट (1928)
- संविधान का मसौदा तैयार करने से पहले इसके सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में समिति गठित की गई थी। रिपोर्ट के मुख्य वास्तुकार मोतीलाल नेहरू और तेज बहादुर सप्रू थे। सिफारिशों ने भारत को डोमिनियन का दर्जा या पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के बारे में बहस को जन्म दिया।
जिन्ना के 14 बिंदु (9 मार्च 1929)
- मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। इसके बाद जिन्ना ने मांगों की एक सूची तैयार की जिसमें जिन्ना के 14 सूत्रीय प्रस्ताव शामिल थे।
कांग्रेस लाहौर अधिवेशन (दिसंबर, 1929)
- 1929 ई के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने "पूर्ण स्वराज" का अपना लक्ष्य घोषित किया।
- इस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे।
- 31 दिसंबर 1929 ई को रात के 12:00 बजे जवाहरलाल नेहरू ने रवि नदी के तट पर नव गृहीत तिरंगे झंडे को फहराया। इसी अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 ई को प्रथम स्वाधीनता दिवस के रूप में बनाने का निश्चय लिया गया। इसी के साथ प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में बनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।
दांडी यात्रा (1930)
- 12 मार्च 1930 ई को गांधी जी ने 79 समर्थको के साथ साबरमती स्थित अपने आश्रम से लगभग 322 किलोमीटर दूर डंडी के लिए प्रस्थान किया लगभग 24 दिनों बाद 6 अप्रैल 1930 ई को दांडी पहुंचे। गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा।
- सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के नमक सत्याग्रह की तुलना नेपोलियन के एल्बा से पेरिस यात्रा से की।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930)
- यह सम्मेलन 12 नवम्बर 1930 को लंदन में साइमन कमीशन पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया था, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा इसका पूर्ण बहिष्कार किया गया था। इस आयोग ने प्रान्तों में स्वशासन और ब्रिटिश भारत तथा केन्द्र में देशी रियासतों के संघ का प्रस्ताव रखा था।
- हालांकि मुस्लिम लीग, उदारवादी और अन्य दलों के प्रतिनिधि आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए एकत्र हुए थे, लेकिन प्रमुख राजनीतिक दल की अनुपस्थिति में प्रथम गोलमेज सम्मेलन स्थगित कर दिया गया था।
गांधी इरविन पैक्ट (5 मार्च 1931)
- 5 मार्च 1931 ई को गांधी इरविन पैक्ट हुआ।
- 1931 के आरंभ में उदारवादी राजनेता सप्रू और जयकर ने गांधीजी और सरकार के बीच समझौता कराने के प्रयास शुरू किए। वायसराय लॉर्ड इरविन के साथ 6 बैठक के बाद अंततः 5 मार्च 1931 को दोनों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत कांग्रेस ने आंदोलन (सविनय अवज्ञा आंदोलन) वापस ले लिया और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने पर सहमत हो गई।
- गांधी-इरविन समझौता को "दिल्ली समझौता" के नाम से भी जाना जाता है।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)
- दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर 1931 को हुआ। महात्मा गांधी ने कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में इसमें भाग लिया
- हालाँकि, यह सम्मेलन विफल रहा क्योंकि गांधीजी सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की नीति पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड से सहमत नहीं हो सके और ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता के लिए मूल भारतीय मांग को स्वीकार नहीं किया। सम्मेलन 1 दिसंबर 1931 को बिना किसी ठोस परिणाम के बंद हो गया।
- दूसरे गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद गांधी जी ने 3 जनवरी 1932 ई पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया।
सांप्रदायिक पुरस्कार (16 अगस्त 1932)
- जैसा कि चर्चा की गई है, सांप्रदायिक पुरस्कार ने हिंदुओं में भारी असंतोष पैदा किया। गांधीजी, जो विरोध में उपवास पर थे, ने सांप्रदायिक पुरस्कार को रद्द करवाने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा दिया। समझौते के अनुसार दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र के विचार को त्याग दिया गया, लेकिन प्रांतीय विधानसभाओं में उनके लिए आरक्षित सीटों को पुरस्कार में 71 से बढ़ाकर 148 कर दिया गया, और केंद्रीय विधानमंडल में 18% कर दिया गया।
- अंततः यह अनशन पूना समझौते के साथ समाप्त हुआ, जिसने पुरस्कार को रद्द कर दिया। हिंदुओं के विभिन्न समूहों और दलों के नेताओं और हरिजनों की ओर से बीआर अंबेडकर ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। सवर्ण हिंदुओं और दलित वर्ग के बीच पूना समझौते में एक संयुक्त निर्वाचक मंडल पर सहमति बनी
पूना पैक्ट (24 सितम्बर 1932)
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद लंदन से लौटते समय गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व पर अपना निर्णय घोषित किया। इसमें मुस्लिम, सिख और यूरोपीय लोगों के प्रतिनिधित्व के अलावा दलित वर्गों के प्रतिनिधित्व की भी व्यवस्था की गई।
- गांधी जी इस बात से बहुत दुखी हुए और उन्होंने इस पुरस्कार के खिलाफ उपवास और विरोध किया, क्योंकि इसका उद्देश्य भारत को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करना था। जबकि कई राजनीतिक भारतीयों ने उपवास को चल रहे राजनीतिक आंदोलन से ध्यान हटाने के रूप में देखा, सभी बहुत चिंतित और भावनात्मक रूप से हिल गए थे। भारत में लगभग हर जगह बड़े पैमाने पर बैठकें हुईं, एम.एम. मालवीय, बी.आर. अंबेडकर और एम.सी. राजा जैसे विभिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक नेता सक्रिय हो गए।
- अंततः वे एक समझौते पर पहुंचने में सफल रहे जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है
तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932)
- यह 1932 में आयोजित किया गया था लेकिन फिर से निरर्थक साबित हुआ क्योंकि राष्ट्रीय नेता जेल में थे
- तीनों गोलमेज सम्मेलन के समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री जेम्स रिम मकाडोनद था। डॉ भीमराव अंबेडकर लंदन में हुई तीनों गोलमेज सभाओं में अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में बुलाए गए।
- तीनों गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने वाले भारतीय नेता थे- डॉ भीमराव अंबेडकर।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन अंतिम रूप से 7 अप्रैल 1934 को वापस लिया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन में पठान सत्याग्रहियों पर गोली चलाने से गढ़वाल राइफल्स ने इनकार कर दिया।
कांग्रेस मंत्रिमंडल सामूहिक त्यागपत्र (22 दिसंबर 1939)
- 3 सितम्बर 1939 को यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल हो गया। भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना वायसराय ने भारत को भी एक युद्धरत देश घोषित कर दिया। इस पर भारतीयों की ओर से तीखी आलोचना हुई और कांग्रेस ने यह रुख अपनाया कि जब भारत को स्वतंत्रता से ही वंचित किया जा रहा है, तो वह घरेलू स्वतंत्रता के लिए होने वाले युद्ध में शामिल नहीं हो सकता। कांग्रेस ने मांग की कि भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए।तभी देश युद्ध में ब्रिटेन की मदद कर सकता है।
- वायसराय ने अपने उत्तर में कांग्रेस की मांग को प्रभावकारी बताते हुए अस्वीकार कर दिया तथा यह रुख अपनाया कि सरकार युद्ध के बाद सम्पूर्ण संवैधानिक योजना पर विचार कर सकती है। कांग्रेस ने वायसराय के उत्तर की निंदा की तथा 22 दिसंबर 1939 ई को कांग्रेस मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से त्यागपत्र दिया, इस दिन को मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस के रूप में बनाया।
मुस्लिम लीग लाहौर अधिवेशन (24 मार्च 1940)
- 24 मार्च 1940 ई को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षता करते हुए अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की। मुस्लिम लीग के 1940 ई के दिल्ली अधिवेशन (अध्यक्षत अल्लाब्बास) में खलीकुन्जमान ने पाकिस्तान नाम से अलग राष्ट्र का प्रस्ताव रखा।
- पाकिस्तान शब्द का जन्मदाता चौधरी रहमत अली थे।
अगस्त प्रस्ताव (अगस्त 1940)
- अगस्त 1940 को वायसराय ने कुछ प्रस्ताव पेश किए, जिन्हें अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। इसमें कहा गया कि ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य भारत में डोमिनियन स्टेटस स्थापित करना है। इसमें यह भी कहा गया कि नए संविधान का निर्माण भारतीयों की जिम्मेदारी होगी। इसमें यह भी कहा गया कि संविधान में अल्पसंख्यकों के विचारों को पूरा महत्व दिया जाएगा। कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद ने अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, जिसका उद्देश्य कांग्रेस को चल रहे विश्व युद्ध में शामिल करना था।
- मुस्लिम लीग ने हालांकि इस प्रस्ताव का स्वागत किया, क्योंकि इससे यह सुनिश्चित हो गया कि मुसलमानों की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी संविधान नहीं अपनाया जाएगा। लीग ने घोषणा की कि भारत के भावी संविधान की सबसे कठिन समस्या का समाधान केवल भारत का विभाजन करके ही किया जा सकता है और संक्षेप में अगस्त का प्रस्ताव युद्ध के लिए भारत का सहयोग प्राप्त करने में विफल रहा और इससे कांग्रेस और अंग्रेजों के साथ-साथ कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच की खाई और चौड़ी हो गई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (अक्टूबर 1940)
- कांग्रेस कार्यसमिति ने 17 अक्टूबर 1940 को व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया। विनोबा भावे पहले सत्याग्रही थे, जिन्हें 21 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया, जिसके बाद शीघ्र ही नेहरू और पटेल सहित कई अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन आंदोलन ने बहुत कम उत्साह पैदा किया और गांधी ने इसे स्थगित कर दिया।
- इस आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही विनोबा भावे, दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरू एवं तीसरे सत्याग्रही ब्रह्मदत्त थे।
- इस आंदोलन को "दिल्ली चलो" आंदोलन भी कहा गया।
क्रिप्स मिशन (1942)
- 1942 में ब्रिटिश सरकार को यह अहसास हो गया कि वह अब भारतीय समस्याओं की अनदेखी नहीं कर सकती। विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप, जापान के भारतीय सीमा की ओर बढ़ने से स्थिति ब्रिटिशों के लिए और खराब हो गई। 7 मार्च 1942 तक रंगून पर विजय प्राप्त हो गई तथा जापान ने सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया पर कब्जा कर लिया। भारतीयों से सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं के साथ अस्वीकृत शर्तों पर समझौता करने के लिए ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा, जिन्हें तत्काल रिहा कर दिया गया।
- क्रिप्स ने युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव रखा लेकिन उनके प्रस्ताव को सभी राजनीतिक नेताओं ने अस्वीकार कर दिया। चूंकि कोई भी पार्टी प्रस्तावों को स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं हुई, इसलिए क्रिप्स मिशन विफल हो गया।
- गांधी जी ने क्रिस्प प्रस्ताव पर कहा- "यह एक आगे की तारीख का चेक है, जिसका बैंक नष्ट होने वाला है"।
- 23 मार्च 1931 ई को सुखदेव, भगत सिंह एवं राजगुरु को फांसी पर लटका दिया गया।
- मई 1934 ई "कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी" की स्थापना हुई।
- 1939 ईस्वी में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित प्रत्याशी पट्टाभिसीतारमैया को हराकर सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।
- 1 मई 1939 ई को सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के भीतर एक नए गुट का गठन किया, जिसे फॉरवर्ड ब्लॉक कहा गया। सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान "फ्री इंडियन लीजन" नामक सेना बनाई थी।
अंग्रेजों भारत छोड़ो (अगस्त 1942)
- वर्धा 1942 ईस्वी में कांग्रेस ने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" प्रस्ताव पारित किया।
- 7 अगस्त 1942 ई को कांग्रेस की बैठक बम्बई के ऐतिहासिक ग्वालियर टैंक में हुई।
- गांधी जी के भारत छोड़ो प्रस्ताव को कांग्रेस की समिति ने 8 अगस्त 1942 ई को स्वीकार कर लिया। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 ई को हुई। इसी आंदोलन में गांधी जी ने "करो या मरो" का नारा दिया।
- 9 अगस्त 1942 को सवेरे ही गांधीजी एवं कांग्रेस के अन्य सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए। गांधी जी को पूने के आगा खा महल में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया। राजेंद्र प्रसाद को भी नजर बंद कर दिया गया था। 9 मई 1944 ई को गांधी जी को जेल से छोड़ा गया।
गांधीजी 21 दिन का उपवास (1943)
- गांधीजी ने जेल में 21 दिन का उपवास किया। 13 दिन के बाद उनकी हालत बिगड़ गई और उनके बचने की सारी उम्मीदें खत्म हो गईं। हालांकि, अपनी नैतिक ताकत और आध्यात्मिक सहनशक्ति के कारण वे बच गए और 21 दिन का उपवास पूरा किया।
- यह सरकार को उनका जवाब था जो लगातार उनसे भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों की हिंसा की निंदा करने के लिए कह रही थी। गांधीजी ने न केवल हिंसा का सहारा लेने वाले लोगों की निंदा करने से इनकार कर दिया, बल्कि इसके लिए सरकार को स्पष्ट रूप से जिम्मेदार ठहराया।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी सूत्र (1944)
- 1994 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने उत्तर-पश्चिम और पूर्व में उन जिलों का सीमांकन करने के लिए एक आयोग नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। ऐसे क्षेत्रों में अलगाव के मुद्दे पर निर्णय करने के लिए वयस्क मताधिकार के आधार पर जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव था। यदि वे एक संप्रभु राज्य के पक्ष में होते तो उन्हें स्वतंत्रता दी जाती। विभाजन को स्वीकार करने की स्थिति में, रक्षा, वाणिज्य, संचार आदि की सुरक्षा के लिए संयुक्त रूप से समझौता किया जाना था। मुस्लिम लीग को कांग्रेस की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करना था और अनंतिम सरकार के गठन में सहयोग करना था। जिन्ना ने इसका विरोध किया क्योंकि वे चाहते थे कि कांग्रेस दो-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार करे और चाहते थे कि केवल उत्तर-पश्चिम और भारत के पूर्व के मुसलमान ही जनमत संग्रह में मतदान करें। हिंदू नेताओं ने इस योजना की निंदा की।
वेवेल योजना (1945)
- वर्ष 1945 की शुरुआत में यूरोप में युद्ध की स्थिति में सुधार हुआ। हालाँकि भारत की सद्भावना की आवश्यकता थी क्योंकि जापान के खिलाफ युद्ध लगभग 2 साल तक चलने की उम्मीद थी। आर्थिक स्थिति और अकाल के परिणामस्वरूप देश के भीतर की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। ब्रिटिश सरकार भारतीयों को संतुष्ट करने के लिए किसी तरह की योजना के साथ आगे आने के लिए बाध्य हुई। भारतीय समस्या पर ब्रिटिश सरकार के साथ परामर्श के बाद भारत के वायसराय लॉर्ड वेवेल ने एक बयान जारी किया जिसे वेवेल योजना के रूप में जाना जाता है। यह योजना मुख्य रूप से वायसराय की कार्यकारी परिषद से संबंधित थी, जिसमें परिषद की संरचना में कुछ बदलाव प्रस्तावित किए गए थे। मुख्य प्रस्तावों में से एक यह था कि कार्यकारी परिषद का गठन मुख्य समुदायों को संतुलित प्रतिनिधित्व देते हुए किया जाएगा, जिसमें मुसलमानों और हिंदुओं को समान प्रतिनिधित्व शामिल होगा।
- वेवेल योजना जारी होने के तुरंत बाद कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य जेलों से रिहा हो गए। वेवेल योजना पर विचार करने के लिए शिमला में बुलाए गए 22 प्रमुख भारतीय नेताओं का सम्मेलन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका। जिस बात ने सम्मेलन को बाधित किया वह श्री जिन्ना का अटल रुख था कि केवल मुस्लिम लीग द्वारा अनुमोदित मुस्लिम सदस्यों को कार्यकारी परिषद में शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार सांप्रदायिकता फिर से बाधा बन गई। हालाँकि, अंग्रेजों के लिए, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद खुशी का स्रोत था।
आजाद हिंद फौज
- आजाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम कैप्टन मोहन सिंह के मन में आया।
- आजाद हिंद फौज की प्रथम डिवीजन का गठन 1 सितंबर 1942 ई को कैप्टन मोहन सिंह के द्वारा किया गया परंतु वह असफल रहा।
- आजाद हिंद फौज का सफलतापूर्वक स्थापना का श्रेय रासबिहारी बोस को दिया जाता है।
- अक्टूबर 1943 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिंद फौज का सर्वोच्च सेनापति बनाया गया था। आजाद हिंद फौज के तीन ब्रिगेड के नाम- सुभाष ब्रिगेड, गांधी ब्रिगेड एवं नेहरू ब्रिगेड एवं महिलाओं के ब्रिगेड का नाम लक्ष्मीबाई रेजीमेंट था। आजाद हिंद फौज का झंडा कांग्रेस के तिरंगे झंडे की भांति ही था जिसपर दहाड़ते हुए शेर का चिन्ह था।
- 8 नवंबर 1943 ई को जापान ने अंडमान और निकोबार दीप सुभाष चंद्र बोस को सौप दिया। नेताजी ने इसका नाम क्रमशः -"शाहिद दीप" और "स्वराज दीप" रखा।
- टोक्यो जाते हुए फ़ार्मूसा दीप के बाद अचानक हवाई जहाज में आग लग जाने से सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 ई को मारे गए परंतु इस घटना को अभी तक प्रमाणित नहीं किया गया है।
- नोट- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 ई को कटक उड़ीसा में हुआ था।
- आजाद हिंद फौज के गिरफ्तार अधिकारी पी0के0 सहगल, कर्नल गुरुदयाल ढिल्लों एवं मेजर शाहनवाज खान पर राजद्रोह का आरोप लगाकर दिल्ली के लाल किले पर नवंबर 1945 ईस्वी में मुकदमा चलाया गया। वायसराय ने इनकी सजा माफ कर दी।
- आजाद हिंद फौज के अभियुक्तों की तरफ से तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, भोलाभाई देसाई एवं के0एन0 काटजू ने पैरवी की।
- कराची में 20 फरवरी 1946 ई वायु सेवा के कुछ सैनिकों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हड़ताल कर दी। बम्बई, लाहौर, दिल्ली में भी यह शीघ्र ही फैल गई। इसमें लगभग 5200 सैनिकों ने भाग लिया। इसके प्रमुख मांग भारतीय एवं अंग्रेजी सेना में बराबरी के व्यवहार करना ।
- नौसेना विद्रोह 19 फरवरी 1946 ई को बम्बई में आई0 एन0 एस0 तलवार नामक जहाज के नौ सैनिकों के द्वारा किया गया। 5000 सैनिकों ने आजाद हिंद फौज के बिल्ले लगाए। इन्होंने भी बराबरी की मांग की।
कैबिनेट मिशन योजना (1946)
- कैबिनेट मिशन योजना को मुस्लिम लीग ने 6 जून 1946 ई को और कांग्रेस में 25 जून 1947 ई को स्वीकार कर लिया। कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार किए जाने के पश्चात संविधान सभा के निर्माण के लिए हुए चुनाव (जुलाई 1946 ईस्वी) में कांग्रेस ने 214 समान स्थान में से 205 स्थान प्राप्त किया एवं मुस्लिम लीग ने 78 मुस्लिम स्थान में 73 स्थान प्राप्त किया। कांग्रेस को चार सिख सदस्यों का भी समर्थन प्राप्त था।
- मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 ई को सीधी कार्रवाई दिवस मनाया।
- 27 मार्च 1947 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान दिवस के रूप में बनाया।
- जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन 2 सितम्बर 1946 ईस्वी को हुआ 26 अक्टूबर 1946 ईस्वी को मुस्लिम लीग 5 सदस्य अंतरिम सरकार में सम्मिलित हुई।
माउंटबेटन योजना (3 जून, 1947)
- मार्च, 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन ने लॉर्ड वेवेल की जगह ली। उन्होंने 3 जून, 1947 को अपनी योजना की घोषणा की। इस 3 जून की योजना के लिए उनकी पिछली योजना बाल्कन को छोड़ दिया गया था। इसने भारत के संविधान को बनाने के लिए गठित संविधान सभा में शामिल होने से मुस्लिम लीग के इनकार से पैदा हुए राजनीतिक और संवैधानिक गतिरोध को दूर करने की कुंजी पेश की। माउंटबेटन का सूत्र भारत को विभाजित करना था, लेकिन अधिकतम एकता बनाए रखना था। देश का विभाजन होगा, लेकिन पंजाब और बंगाल का भी विभाजन होगा, ताकि जो सीमित पाकिस्तान बनेगा, वह कुछ हद तक कांग्रेस और लीग दोनों की स्थिति को पूरा कर सके। पाकिस्तान पर लीग की स्थिति को स्वीकार किया गया कि इसे बनाया जाएगा, लेकिन पाकिस्तान को जितना संभव हो सके उतना छोटा बनाने के लिए एकता पर कांग्रेस की स्थिति को ध्यान में रखा जाएगा। उन्होंने देश के विभाजन और भारत और पाकिस्तान के नवगठित डोमिनियन को डोमिनियन स्थिति के रूप में राजनीतिक शक्तियों के त्वरित हस्तांतरण के लिए विस्तृत सिद्धांत निर्धारित किए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा इसे स्वीकार किए जाने के परिणामस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- 3 जून, 1947 की माउंटबेटन योजना के प्रावधानों वाले विधेयक को ब्रिटिश संसद में पेश किया गया और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के रूप में पारित किया गया। इस अधिनियम में भारत के विभाजन और भारत और पाकिस्तान की नई सरकारों को राजनीतिक शक्तियों के शीघ्र हस्तांतरण के लिए विस्तृत उपाय निर्धारित किए गए थे।
- स्वतंत्र प्राप्ति के समय कांग्रेस के अध्यक्ष जे0 वी0 कृपलानी एवं ब्रिटैन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली (लेबर पार्टी) थे।
Important Titles to freedom fighter and political leader
- शहीद -ऐ -आजम के नाम से भगत सिंह को जाना जाता है।
- स्वर्ण हिंदुओं की फांसीवादी कांग्रेस कह कर कांग्रेस का चरित्र निरूपण मोहम्मद अली जिन्ना ने किया।
- महात्मा गांधी को रविंद्र नाथ टैगोर ने सर्वप्रथम "महात्मा" कहा।
- महात्मा गांधी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कह कर संबोधित सुभाष चंद्र बोस ने किया।
- वल्लभभाई पटेल को "सरदार" की उपाधि बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां के महिलाओं की ओर से गांधी जी ने प्रदान की।
- भारत का विश्वमार्क सरदार वल्लभभाई पटेल को कहा जाता है।
- सुभाष चंद्र बोस को सर्वप्रथम नेताजी एडोल्फ हिटलर ने कहा था।
- 19वीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण का पिता राजा राममोहन राय को कहा जाता है।
- चर्चिल ने महात्मा गांधी को अर्धनग्न फकीर कहा था।
- भारत के पितामह ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया दादाभाई नौरोजी को कहा जाता है।
- गोपाल हरिदेशमुख को "लोक हितकारी" के नाम से भी जाना जाता है।
- बिना ताज का बादशाह सुरेंद्रनाथ बनर्जी को कहा जाता है।
- ए०ओ० ह्यूम को "हर्मित ऑफ़ शिमला" कहा जाता है।
कथन व नारा
- सबके लिए "एक जाति, एक धर्म एक ईश्वर" का नारा श्री नारायण गुरु ने दिया।
- मैं एक क्रांतिकारी के रूप में कार्य करता हूं। यह कथन- जवाहरलाल नेहरू का था।
- "मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा" -महात्मा गांधी ने कहा।
- इंकलाब जिंदाबाद का नारा भगत सिंह ने दिया।
- बांटो और छोड़ो का नारा लीग ने दिसंबर 1943 ई के कराची अधिवेशन में लिया।
मुखबिर
- दिल्ली षड्यंत्र केस में दीनानाथ के द्वारा मुखबिरी की गई थी।
- भगत सिंह के विरोध मुखबरी करने के कारण सुरेंद्र घोष की हत्या बैकुंठ शुक्ल ने की थी।
- अलीपुर केस में सरकारी गवाह नरेंद्र गोसाई बन गया था।
राजनीतिक गुरु
- गोखले के आध्यात्मिक एवं राजनीतिक गुरु एम0 जी0 रानाडे थे।
- महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु "गोपाल कृष्ण गोखले" थे।
- सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास थे।
Important Points to be Remember
- महात्मा गांधी द्वारा स्थापित "हरिजन सेवक संघ" के संस्थापक अध्यक्ष घनश्याम दास बिरला थे।
- गांधी जी ने कांग्रेस के सदस्यता से दो बार त्यागपत्र दिया 1925 और 1930 ईस्वी में।
- कांग्रेस का प्रथम ब्रिटिश अध्यक्ष जॉर्जि योल था।
- डंडा फौजी का गठन पंजाब में चमनदीप ने किया।
- दीनबंधु मित्र का नाटक "नील दर्पण" में नील की खेती करने वालों पर हुए अत्याचार का उल्लेख है।
- "राष्ट्रवादी अहरार आंदोलन" मजहर-उल-हक ने आरंभ किया।
- आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत रामस्वामी नायकर ने की।
- निरंकारी आंदोलन की शुरुआत दयालदास ने की।
- ब्रह्मसमाज का प्रतिज्ञा पत्र देवेंद्रनाथ ठाकुर ने तैयार किया।
- देवसमाज के संस्थापक शिवनारायण अग्निहोत्री थे।
- तरुण स्त्रीसभा की स्थापना कोलकाता में की गई।
- "अखिल भारतीय किसान सभा" की स्थापना लखनऊ में हुई।
- स्वामी विवेकानंद ने 1893 ईस्वी में शिकागो में विश्वधर्म सम्मेलन को संबोधित किया।
- सबसे कम उम्र में फांसी की सजा पाने वाला क्रांतिकारी खुदीराम बोस था।
- भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश जी0 सी0 हिल्टन था।
- शुद्धि आंदोलन के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती थे।
- अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना महात्मा गांधी ने की थी।
- भारतीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद से संबंधित है।
- यंग बंगाल आंदोलन का प्रवर्तक विवियन डेरीजिओ था।
- कांग्रेस ने मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में "भारत छोड़ो" प्रस्ताव को पारित किया।
- ए०ओ० ह्यूम 1885 से 1907 ई तक कांग्रेस के महामंत्री रहे।
- कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बदरुद्दीन तैयब्जी थे।
- इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लीग की स्थापना जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने की थी।
- इंडिया इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना राज बिहारी बोस ने की थी।
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुख्यात सेल्यूलर जेल अंडमान में स्थित है।
- आर्य महिला सभा की स्थापना पंडिता रमाबाई ने की।
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