भारत की मृदा (Soil in India)
मृदा भारतीय किसान की अमूल्य संपदा है। इस पर देश को संपूर्ण कृषि उत्पादन निर्भर करता है।
मृदा के अध्ययन को मृदा विज्ञान (Pedology) कहते हैं।
मृदाजनन पथोजेनेसिस (Pedogenesis) एक जटिल तथा निरंतर होने वाली प्रक्रिया है।
मृदा का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF SOILS)
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने 1986 में देश में आठ प्रमुख मिट्टियो की पहचान की तथा 27 गौड़ प्रकार की मिट्टियों की पहचान की है।
Source: NCERT, Type of Soil |
जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soils)
Source:NCERT, Alluvial Soil |
- जलोढ़ मिट्टी विशाल मैदानो, पंजाब से असम, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी की घाटियों एवं केरल के तटवर्ती भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी देश के 43.4% (15 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र) भू-क्षेत्र में विस्तृत है।
- यह मिट्टिया नदियों द्वारा अपरदित पदार्थो से निर्मित है।
- बाढ़ के मैदान की कांप को स्थानीय रूप से खादर कहा जाता है, एवं पुरानी कांप जो अपरदन से अप्रभावित होती है बांगर कहलाती है।
- इसमें पोटाश तथा कैल्सियम की प्रचुरता तथा नाइट्रोजन एवं हमस की कमी पाई जाती है।
- यह मिट्टी धान, गेहूं, तिलहन, गन्ना, दलहन आदि की खेती के लिए उत्तम है।
काली मिट्टी (Black soils)
Source:NCERT, Black Soil |
- काली मिट्टी का विकास महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में दक्कन लावा के अपक्षय से हुआ है।
- इन्हें स्थानीय रूप से रेगर या काली कपास की मिट्टी तथा अंतरराष्ट्रीय रूप से उष्णकटिबंधीय चरनोजम कहा जाता है।
- यह मिट्टिया लोह तत्व ,कैल्शियम, पोटाश, अल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से समृद्ध होती है किंतु इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा जैविक पदार्थ की कमी होती है।
- इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है जो गीली होने पर चिपचिपी एवं सूखने पर इसमें दरारे उत्पन्न हो जाते हैं।
- इसमें उर्वरता अधिक होती है।
- यह मिट्टी कपास, तूर, तंबाकू, मोटे अनाज, अलसी आदि की खेती के लिए उपयुक्त रहती है।
लाल मिट्टी (Red and Yellow soils)
- यह मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं झारखंड के व्यापक क्षेत्र में पाई जाती है।
- यह ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों के विखंडन एवं वियोजन से बनी है।
- इसका रंग लाल, लोहे के ऑक्साइड के उपस्थिति के कारण है।
- इस मिट्टी में लोह तत्व अल्युमिनियम तथा चूना अधिक होता है, किंतु जीवांश पदार्थ, नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की कमी पाई जाती है।
- यह अत्यधिक निक्षालित() मिट्टिया है।
- यह बाजरे जैसी खाद्यान्न फसलों के लिए उपयुक्त होती हैं।
लेटराइट मिट्टी (Laterite soils)
- भारत में यह मिट्टी केरल, महाराष्ट्र, असम तथा मेघालय पठार, पश्चिमी तथा पूर्वी घाट क्षेत्र में पाई जाती है।
- इसका स्वरूप ईंट जैसा होता है, भीगने पर यह कोमल एवं सूखने पर कठोर हो जाती है।
- यह मिट्टिया लोह एवं अल्युमिनियम से समृद्ध होती है, किंतु इसमें नाइट्रोजन, पोटाश, पोटेशियम, चूना एवं जैविक पदार्थ की कमी होती है। इसकी उर्वरता कम होती है किंतु उर्वरक के प्रयोग से इसमें काजू आदि फैसले उगाई जा सकती है।
पर्वतीय मिट्टी (Mountaineous/Forest soils)
- यह मुख्यतः हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, प्रायद्वीपीय भारत के अन्य पर्वत श्रेणियां पर पाई जाती है।
- इसमें जीवांश की अधिकता एवं पोटाश, फास्फोरस एवं चूना की कमी पाई जाती है।
- यह मिट्टी चाय, कहवा, मसाला तथा फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
मरुस्थलीय मिट्टी (Arid/Dessert soils)
Source:NCERT, Arid Soil |
- मरुस्थलीय मिट्टी का विस्तार राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा एवं दक्षिणी पंजाब में है।
- यह बजरी युक्त मिट्टी है जिसमें नाइट्रोजन एवं जैविक पदार्थ की कमी एवं कैल्शियम कार्बोनेट की भिन्न मात्रा पाई जाती है।
- इसमें केवल मिलेट, बाजरा, ज्वार तथा मोटे अनाज ही उगाए जाते हैं।
पीट एवं दलदली मिट्टी (Peaty soils)
- यह मृदा वर्षा ऋतु में जलमग्न होने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
- यह मिट्टिया काली, भारी एवं अत्यधिक अम्लीय होती हैं तथा धन की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं।
- यह मिट्टिया केरल तथा तमिलनाडु में मिलती हैं।
लावणीय एवं क्षारीय मिट्टी (Saline soils)
- यह मिट्टिया पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा बिहार के शुष्क भागों में पाई जाती है।
- यह रेह, कल्लर, उसर, राथल, थूल, चोपन आदि स्थानीय नाम से जानी जाती है।
- इसमें चावल, गेहूं, कपास, गन्ना, तंबाकू आदि फैसले उगाई जाती हैं।
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